Sunday, February 7, 2010

एमीर कुस्तुरिका की "अन्डरग्राउन्ड"



सर्बियाई मूल के अति प्रतिभाशाली निर्देशक एमीर कुस्तुरिका की फ़िल्म अन्डरग्राउन्ड दो दोस्तों के माध्यम से युगोस्लाविया के इतिहास को एक अलग दृष्टिकोण से देखती है. फ़िल्म दूसरे विश्वयुद्ध से शीतयुद्ध और फिर १९९० के दशक के गृहयुद्ध तक का लम्बा अर्सा तय करती है. एमीर कुस्तुरिका फ़िलहाल यूरोप के सबसे प्रतिभाशाली फ़िल्मकारों में गिने जाते हैं.

फ़िल्म की शुरूआत ६ अप्रैल १९४१ को बेलग्रेड की एक भोर से है जब रात भर ख़ूब दारू पी कर दो दोस्त ब्लैकी और मार्को अपने घरों को जा रहे हैं. उनके पीछे बाक़ायदा एक ब्रास ऑर्केस्ट्रा चल रहा है. रास्ते में वे मार्को के विकलांग और हकले भाई इवान से दुआसलाम करते हैं . इवान शहर के चिड़ियाघर में जानवरों की देखभाली करता है. वहां से वे ब्लैकी के घर पहुंचते हैं जहां ब्लैकी की गर्भवती पत्नी वेरा उनका इन्तज़ार कर रही है. मार्को वेरा को बताता है कि ब्लैकी ने कम्यूनिस्ट पार्टी की सदस्यता ले ली है. अगली सुबह जर्मन सेना बमबारी करती है - इवान के सारे जानवर मारे जाते हैं सिवाय एक शिशु चिम्पान्ज़ी के. बमबारी का ब्लैकी और मार्को पर कोई ख़ास प्रभाव नज़र नहीं दिखता. कम्यूनिस्ट गतिविधियां जारी रखते हुए ये दोनों जर्मन हथियारों और मूल्यवान वस्तुओं की चोरी के काम में लगे रहते हैं. बजाय इस चोरी के सामान के सही बंटवारे के ब्लैकी और मार्को इन से प्राप्त मुनाफ़े को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. ब्लैकी जब तब अपनी प्रेमिका नतालिया से मिलने जाता है जिसे इन दिनों फ़्रान्ज़ नाम का एक जर्मन अफ़सर रिझाने की कोशिश कर रहा है. नतालिया एक बर्बाद और अवसरवादी अभिनेत्री है. नाज़ी रेडियो पर अपनी खोज की सूचना मिलने पर ब्लैकी और मार्को अपने मित्रों और सम्बन्धियों के साथ मार्को के दादा के गुप्त तहखाने में जा छिपते हैं. तहख़ाने में जाते ही वेरा एक बेटे, योवेन, को जन्म देती हुई गुज़र जाती है.

तीन साल बाद ब्लैकी एक कम्यूनिस्ट अड्डे में अपने बेटे का तीसरा जन्मदिन मनाता है. कई हथियार-दलालों के साथ लड़ाई करने के बाद अचानक ब्लैकी मार्को से कहता है कि वह उसकी शादी करवाने में उसकी मदद करे. वे नेशनल थियेटर में जाते हैं जहां नतालिया जर्मन दर्सकों के समक्ष अभिनय कर रही है. किसी जुगत से ब्लैकी मंच पर पहुंच जाता है और नाटक का हिस्सा बन कर नाटक देख रहे फ़्रान्ज़ के सीने में गोली मार देता है. नतालिया को अपनी पीठ पर बांध कर वह मार्को के साथ एक नाव पर पहुंचता है जहां नतालिया के साथ उसकी शादी किया जाना तय हुआ है. ब्लैकी फ़ारिग होने बाहर जाता है और मार्को नतालिया को रिझाना शुरू कर देता है. वह नतालिया को बताता है कि ब्लैकी एक छोटे तबके के आदमी है और एक साधारण बिजलीवाला है जो उसकी संगत में रहता हुआ अमीर हो गया है, न कि कोई इंजीनियर जैसा उसने नतालिया को बताया हुआ है. मार्को उससे कहता है कि उसके लायक तो कोई पढ़ा लिखा आदमी ही हो सकता है. उन्हें चूमने की मुद्रा में देख वापस आया ब्लैकी ग़ुस्से में पागल हो जाता है पर किसी तरह उसे मना लिया जाता है. तीनों काफ़ी देर तक पीते रहते हैं और मस्ती में गाते रहते हैं. फ़्रान्ज़ (जो बुलेप्रूफ़ जैकेट पहने होने के कारण बच जाता है) नाव को घेर लेता है. मार्को भागने में सफल होता है लेकिन ब्लैकी पकड़ा जाता है. बाद में डॉक्टर का भेस धरकर मार्को अस्पताल पहुंचता है जहां वह नतालिया की आंखों के सामने फ़्रान्ज़ का क़त्ल कर देता है और ब्लैकी को छुड़ा लेता है. वह ब्लैकी को एक बक्से में छिपा कर ले जाता है जिसके भीतर उसके पास आपातकाल में इस्तेमाल के लिए रखा बम फट जाता है और तीनों बमुश्किल उस तहखाने में पहंचते हैं. ब्लैकी का उपचार चल रहा होता है जब शहर मुक्त हो जाता है - नतालिया मार्को का साथ देने उसके पास चली आती है.

फ़िल्म अब १९६१ में खुलती है. मार्को एक प्रभावशाली कम्यूनिस्ट नेता बन चुका है. उसने यह झूटा मिथक फैला दिया है कि ब्लैकी नाज़ी सेना से लड़ते हुए मारा गया था. वह उसे राष्ट्रीय नायक के तौर पर प्रतिष्ठित करता है और उसके सम्मान में उसकी मूर्ति का अनावरण भी करता है. वास्तविकता में मार्को ने तहखाने में रह रहे ब्लैकी और अन्य लोगों को मूर्ख बना रखा है कि विश्वयुद्ध अभी जारी है ...

यहीं से असल कहानी शुरू होती है!

अपने ब्लैक ह्यूमर और इतिहास को एक साहसी निगाह के साथ तोड़ मरोड़ देने वाली यह फ़िल्म अपूर्व सर्रियल छवियों से भरपूर है और तमाम मानवीय भावनाओं और जटिलताओं से.

बेहतरीन आख़िरी दृश्य के अलावा फ़िल्म में कई सारे अविस्मरणीय पल हैं जिनका ज़िक्र यहां करने से बेहतर है कि आप इस फ़िल्म को ज़रूर देखें.

१९९५ के कान फ़िल्म फ़ेस्टीवल में इस फ़िल्म को गोल्डन पाम अवार्ड मिला था. एमीर कुस्तुरिका को दूसरा गोल्डन पाम उनकी फ़िल्म व्हैन फ़ादर वॉज़ अवे ऑन बिज़नेस के लिए मिला था - दो बार यह सम्मान पाने वाले वे कुल सातवें फ़िल्मकार हैं. अन्डरग्राउन्ड को और भी कई इनामात हासिल हुए.

अपने कथ्य के कारण यह फ़िल्म विवादों में भी घिरी रही लेकिन किसी भी ऐसे तथ्य को अभी साबित किया जाना बाकी है कि यह किसी तरह का प्रोपेगेण्डा थी.

अपनी ज़बरदस्त पटकथा और कमाल के कैमरावर्क के कारण इस फ़िल्म को कम से कम दो बार तो देखा ही जा सकता है.









फ़िल्म की एक वीडियो क्लिप देखिये:

2 comments:

  1. Badhiya Ashok bhai... Aaj hi check karta hun ye film.

    ReplyDelete
  2. kaii vidhaon se isi tarh parichay hai ki un vidhaon ke parkhee ko padh liya jay. dhanyvaad.

    ReplyDelete