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और लाल हैं इसकी चट्टाने"
यह लाली ध्वंस की, युद्ध की है जो इस कहानी के साथ शुरू होकर अंत तक साथ रहती है। कुछ तो ताकियामा मिचियो लिखित युद्ध-विरोधी बाल-उपन्यास होने के कारण और कुछ कोन इचिकावा के इस उपन्यास की संवेदनशील व्याख्या के कारण फ़िल्म The Burmese Harp किसी भी कोण से एक युद्ध-आधरित फ़िल्म नहीं लगती। संभवत: फ़िल्म का प्रारूप तैयार करते समय इचिकावा के दिमाग में यह स्पष्ट था कि उन्हें युद्धरत मनुष्य के मानवीय पक्ष को उजागर करना है।
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फ़िल्म में मानवीय संवेदनशीलता को प्रस्तुत करने के लिये हार्प एक प्रतीक है। इसके अलावा पूरी फ़िल्म में ही युद्ध के दृश्यों और उसकी भयावहता को दिखाने के लालच से इचिकावा बचते रहे हैं। बर्मा में भटक गई एक टुकड़ी, जो जापान लौटने की हरसंभव कोशिश कर रही है, जब थककर जंगल में सुस्ताने के लिये लेटती है तो एक-एक जवान के चेहरे से विशाद और निराशा झरती है। ऐसे हर मौके पर वे उदासी से उबरने के लिये “हान्यू नो यादो” (देश, प्यारे देश) गाते हैं। जवानों के भीतर इस गीत को स्पंदित करता है मिज़ुशिमा का हार्प-वादन, जोकि करुणा, आशा और रूदन के बीच कहीं कानों में बजता है और अज्ञेय की इन पंक्तियों जैसा कुछ चारों ओर गूँजने लगता है:
“अभी न हारो अच्छी आत्मा
मैं हूँ, तुम हो
और अभी मेरी आस्था है।”
टुकड़ी का कैप्टन इनोये खुद एक संगीत-प्रेमी और संगीत-विशारद है और संगीत को उसने अपने सैनिकों में इस तरह घोल दिया है कि जहां हर क्षण मरने का डर उनके सिर पर जमा रहता है वहीं
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एक गांव में जब इस टुकड़ी को फसाने के लिये जाल
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इस टुकड़ी और मिज़ुशिमा के बीच संवाद में एक मौलिक अंतर स्पष्ट दिखता है। यह अंतर है दूसरी टुकड़ी की युद्ध-मानसिकता का। वे सभी युद्ध से इतना ग्रसित हैं और युद्ध बाहर से ज़्यादा उनके भीतर इतना पैठ चुका है कि मिज़ुशिमा की तमाम कोशिशों के बावजूद वे आत्मसमर्पण करने को राज़ी नहीं होते और अंतत: मारे जाते हैं।
इधर मुदोन भेजी जा चुकी कैप्टन इनोये की टुकड़ी मिज़ोशिमा के न लौटने पर परेशान होती रहती है मगर उनके अंदर कहीं भरोसा है कि मिज़ोशिमा ठीक है। मिज़ोशिमा को एक बौद्ध भिक्षु बचा लेता है। भिक्षु के वेश में मुदोन जाते हुए जब मिज़ोशिमा इधर-उधर बिखरी जापानी सैनिकों की लाशें देखता है तो फ़िल्म में एक सैनिक का मानवीय पक्ष अपने चरम के साथ उपस्थित होता है। मिज़ोशिमा मन ही मन ठान लेता है कि सभी लाशों का अंतिम संस्कार करना उसका मानवोचित कर्तव्य है और वह इसमें जुट जाता है। मुदोन पहुँचकर भी वह अपनी टुकड़ी से नहीं मिलता बल्कि दीक्षा लेकर अपने अभियान में जुट जाता है। उसकी टुकड़ी और कैप्टन का यह विश्वास कि वह जीवित है उन सभी घटनाओं के क्रम से और भी अधिक दृढ़ हो जाता है जब या तो वे मिज़ोशिमा को भिक्षु के रूप में या उसके हार्प-वादन को गाहे-बगाहे मुदोन में पहचान लेते हैं।
मिज़ोशिमा की अनवरत चुप्पी और अपनी पहचान छिपाने की कोशिशें हमारे सामने इचिकावा की योग्यता को उजागर करती हैं। बिना प्रत्यक्ष संवाद के वह जिस तरह अपनी प्रतिबद्धता और आस्था अपने मिशन में दर्शाता है वह कैप्टन के फ़िल्म के अंत में सैनिकों के सामने मिज़ोशिमा का पत्र पढ़ने से भी पहले दर्शक के सामने उजागर हो जाती हैं। इचिकावा का चमत्कार फ़िल्म में पात्रों के अभिनय में स्पष्टत: दिखाई देता है चूंकि यह अभिनय कहीं भी सायास नहीं नज़र आता। मिज़ुशिमा का एक सैनिक से एक भिक्षु में परिवर्तन अनायास या नाटकीय नहीं है। यह तथ्य एक गुण की तरह उसकी पूरी टुकड़ी में पह
ले से ही गाहे-बगाहे दिखता रहता है और परिस्थितियाँ मिज़ोशिमा को ऐसा सशक्त कदम लेने और उसपर बने रहने के लिये प्रेरित भी करता है। साथी सैनिकों द्वारा भिक्षु मिज़ुशिमा को लौट आने के लिए प्रेरित करने के लिये “हान्यू नो यादो” गाने और मिज़ुशिमा द्वारा अपनी पहचान उजागर करते हुए हार्प में संगत करने पर एक और नाटकीय सक्षमता प्रकट होती है। वह यह कि हार्प के द्वारा जवाब देते हुए मिज़ोशिमा यह भी कह रहा है कि अब मैं नहीं लौटूँगा।
फ़िल्म का सिनोप्सिस देने से मैं बच रहा हूँ क्योंकि मेरा प्रयास सिर्फ़ फ़िल्म के बारे में अपने विचार साझा करने से है और फ़िल्म की व्यक्तिगत व्याख्याओं पर संवाद आरंभ करने से है। ऊपर जो भी लिखा है उसमें कहानी सिर्फ़ उतनी भर ही आई है जितनी अपने विचार प्रेषित करने के लिये मुझे ज़रूरी लगी इसलिये मात्र इतने को ही कहानी न समझ लें। घटनाओं का क्रम आगे भी बढ़ता है और कहानी इससे भी अधिक विस्तार से चलती है।
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